विज्ञान भौतिक जगत के सत्य पर विचार करता है जब की आध्यात्म हमारे मनोभावों और विचारों पर शोध करता है, प्रश्न ये है की विज्ञान और आध्यात्म को कैसे संयुक्त किया जाए? साइलेंस की शक्ति इसमें कारगर हो सकती है, आध्यात्मिकता का हमारी चेतना से सम्बद्ध है, शांति की शक्ति से हम सर्वोच्च सत्ता से जुड़ सकते हैं और चेतना के शिखर को समझ सकते हैं। ऐसे कुछ गहन बैटन को लेकर संस्था के स्पार्क विंग द्वारा एक्स्पान्डिंग होरिजोंस साइंस, कॉनशियेसनेस एंड स्पिरिचुअलिटी विषय के तहत दो दिवसीय कांफ्रेंस आयोजित हुई जिसके दुसरे दिन मुंबई से इंडियन बायोफिजिकल साइंटिस्ट पद्मश्री डॉ. रामकृष्ण होसुर, कोमा साइंस ग्रुप की कोडायरेक्टर डॉ. ओलिविया, डीआरडीओ में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. सुशिल चन्द्र, निति आयोग के सदस्य पद्मा भूषण डॉ. वीके सारस्वत, चेन्नई से ओर्थपेडीक ओंकोलोजिस्ट डॉ. नटराजन, भुवनेश्वर एम्स के फॉर्मर डायरेक्टर डॉ. महापात्रा, डीआरडीओ में टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट के जनरल डायरेक्टर हरिबाबू श्रीवास्तव समेत कई दिग्गजों ने अपने विचार रखे।
इसी कांफेरंस में आगे संस्था के वरिष्ठ पदाधिकारियों में संस्था की संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके जयंती, प्रभाग की प्रभाग की कोर कमिटी मेम्बर बीके निहा, बीके छाया, प्रभाग के हेडक्व़ारटर कोर्डिनेटर बीके संजय, जोनल कोर्डिनेटर बीके अनीता समेत अन्य वक्ताओं ने समझाया की आध्यात्मिक प्रज्ञा आत्मिक सत्य को समझना है, दैनिक जीवन में आत्मिकता की अनुभूति से हमारा जीवन पूरी तरह संतुलित और सफल बन जाता है जिससे हम समाज को एक मूल्यवान समाज बना सकते है।