दुनिया की पहली मुख्य प्रशासिका का दर्जा हासिल कर चुकी 102 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी का चंदन नगरी मैसूर में पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। मैसूर के ज्ञान सरोवर में आयोजित कर्नाटक संत समागम में शिरकत की और कहा कि शांति, पवित्रता और धैर्य एक स्वस्थ समाज के लिए महत्वपूर्ण है,जो कि बुद्धियोग परमात्मा से लगाने पर स्वतः ही हासिल हो जाती है। साथ ही उन्होंने संतों की जमकर महिमा भी की। देशभर से आए सैकड़ों नामचीन संतों ने दादी की उर्जा और आध्यात्म की पराकाष्ठा देखकर प्रफुल्लित हुए और दादी को सम्मानित किया।
अटेनिंग सुपरलेटिव कल्चर थू्र द पावर ऑफ गॉड विषय पर आयोजित इस इवेंट के दौरान संस्थान की 82वीं वर्षगांठ और 102वें जन्म दिन के उपलक्ष्य में संस्थान के कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय, मीडिया प्रभाग के अध्यक्ष बीके करूणा, मैसूर सबजोन प्रभारी बीके लक्ष्मी, ओआरसी की निदेशिका बीके आशा, वीवीपुरम सबजोन की मुख्य संयोजिका बीके अंबिका समेत सभी उपस्थित संस्थान के वरिष्ठ पदाधिकारियों व संतों-महात्माओं ने कैंडल लाइटिंग कर व केक काटकर खुशियां मनाई। इस खूबसूरत नज़ारे को देखकर सभी के दिल में बस एक ही आश जग रही थी कि ये घड़ी यहीं ठहर जाए और दादी जी हमेशा उनके साथ रहे। कार्यक्रम में महालिंगा और उनके ग्रुप ने सुंदर सांस्कृतिक प्रस्तुति दी।
श्री सिद्धगंगा श्री क्षेत्र के श्री सिद्धलिंग महास्वामी, श्री रामकृष्ण आश्रम के अध्यक्ष स्वामी आत्मज्ञानंद जी ने अपने संबोधन में बलिदान, तपस्या व सेवा के महत्व को समझाया। साथ ही संस्थान के अन्य वरिष्ठ जनों ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत के संतों के कारण ही भारत की महिमा इतनी महान है।
ब्रह्माकुमारीज और जगदगुरू श्री वीरासिंहासना महासमस्थना इस विशाल संत सम्मेलन के दौरान कर्नाटक के विभिन्न हिस्सों से 250 से भी अधिक संतों का सम्मान किया गया।