प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के साकार संस्थापक पिताश्री ब्रह्माबाबा एक ऐसी शख़्सियत जिनके अव्यक्त होने के बावज़ूद भी उनकी मौजूदगी का एहसास आज भी मधुबन के जर्रे जर्रे में होता है और आने वाले लाखों लोगों को संबल प्रदान करता है.। 18 जनवरी सन् 1969 ये वो दिन है जब संस्थान की नींव रखने वाले विश्व शांति के महानायक ब्रह्माबाबा ने भौतिक शरीर का त्याग किया और अव्यक्त फरिश्ता बन गए। जिसे आज विश्व शांति दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
ब्रह्मा वत्सों के दिल की धड़कन और नवजीवन दाता पिताश्री ब्रह्मा बाबा एक ऐसी महान विभूति थे जिनके त्याग और तपस्या की गाथा आज भी लोगों की जुबां पर हैं। उनकी 49वीं पुण्यतिथि पर सभी ने संपूर्णता की मंज़िल प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, इस मौके पर संस्था प्रमुख राजयोगिनी दादी जानकी, महासचिव बी.के. निर्वैर, कार्यकारी सचिव बी.के. मृत्युंजय, जनसंपर्क एवं सूचना निदेशक बी.के. करूणा, राजयोगिनी दादी ईशू समेत हजारों सदस्यों ने उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लेते हुए अश्रुपूरक श्रद्धांजलि दी।
मुंबई के भांडुप में भी पिताश्री ब्रह्माबाबा की 49वीं पुण्यतिथि के अवसर पर पिताश्री ब्रह्माबाबा एक अद्भुत जीवन कहानी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें सेवाकेंद्र प्रभारी बी.के. लाजवंती ने बताया कि किस प्रकार से ब्रह्माबाबा ने त्याग तपस्या और सेवा से संपूर्ण स्थिति को प्राप्त किया है।